हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स ,अवतार सिंह बिष्टभगवान काल भैरव को काले तिल,उड़द और सरसों का तेल का दीपक अर्पित करना चाहिए साथ ही मंत्रों के जाप के साथ ही उनकी विधिवत पूजा करने से वह प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा प्राप्त होती है।

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भैरव का अर्थ होता है जिसका रव अर्थात् शब्द भीषण हो और जो देखने में भयंकर लगता हो। इसके अलावा घोर विनाश करने वाला उग्रदेव। भैरव का एक दूसरा अर्थ है जो भय से मुक्त करे वह भैरव। ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। भैरव एक पदवी है। भैरव को भगवान् शिव के अन्य अनुचर, जैसे भूत-प्रेत, पिशाच आदि का अधिपति माना गया है। इनकी उत्पत्ति भगवती महामाया की कृपा से हुई है।

कलियुग में काल भैरव की उपासना शीघ्र फल देने वाली मानी गयी है। उनके दर्शन मात्र से शनि और राहु जैसे क्रूर ग्रहों का भी कुप्रभाव समाप्त हो जाता है। काल भैरव की सात्त्विक, राजसिक और तामसी तीनों विधियों में उपासना की जाती है। इनकी पूजा में उड़द और उड़द से बनी वस्तुएं जैसे इमरती, दही बड़े आदि शामिल होते हैं। चमेली के फूल इन्हें विशेष प्रिय हैं। पहले भैरव को बकरे की बलि देने की प्रथा थी, जिस कारण मांस चढ़ाने की प्रथा चली आ रही थी, लेकिन अब परिवर्तन आ चुका है। अब बलि की प्रथा बंद हो गई है। शराब इस लिए चढ़ाई जाती है क्योंकि मान्यता है कि भैरव को शराब चढ़ाकर बड़ी आसानी से मन मांगी मुराद हासिल की जा सकती है। कुछ लोग मानते हैं कि शराब ग्रहण कर भैरव अपने उपासक पर कुछ उसी अंदाज में मेहरबान हो जाते हैं जिस तरह आम आदमी को शराब पिलाकर अपेक्षाकृत अधिक लाभ उठाया जा सकता है। यह छोटी सोच है।

मुख्य रूप से आठ भैरव माने गए हैं- 1. असितांग भैरव, 2. रुद्र भैरव, 3. चंद्र भैरव, 4. क्रोध भैरव, 5. उन्मत्त भैरव, 6. कपाली भैरव, 7. भीषण भैरव और 8. संहार भैरव।

केदारनाथ धाम में स्थित भगवान केदार के दर्शन से पहले यहां एक अहम परंपरा निभाई जाती है। इस मंदिर में भगवान केदार की आरती तब तक नहीं की जाती, जब तक भैरवनाथ मंदिर के कपाट नहीं खोले जाते हैं। स्थानीय लोग भगवान भैरवनाथ को केदारनाथ के क्षेत्ररक्षक के रूप में पूजते हैं। जब तक केदारनाथ स्थित भैरव मंदिर के कपाट नहीं खुलते हैं, तब तक भगवान केदारनाथ की रात्रि की आरती नहीं होती है। साथ ही भगवान केदारनाथ को बाल भोग भी नहीं चढ़ाया जाता है। उत्तराखंड में भैरवनाथ को गोलू देवता के नाम से  भी पुकारा जाता है। इनमें से एक नाम गौर भैरव भी है। गोलू देवता को भगवान शिव का ही एक अवतार माना जाता है।

भैरवनाथ उत्तराखंड के लोक देवता हैं जिन्हें स्थानीय लोगों में इष्ट देवता के रूप में भी पूजा जाता है। उत्तराखंड में कोई भी ऐसा गाँव नहीं होगा जहाँ भैरवनाथ का मंदिर न हो। भैरवनाथ एक रहस्यमयी देवता हैं इसलिए इन्हें उत्तराखंड का कोतवाल भी कहा जाता है। माँ दुर्गा के सिपह सलाहकार भी काल भैरव ही हैं। शिव का अवतार होने के कारण ये माँ दुर्गा को भी अत्यंत प्रिय हैं तो इसलिए जहाँ भी माता का मंदिर होगा वहां काल भैरव भी अवश्य होंगे।

पुराणों में उल्लेख है कि शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव। मुख्‍यत: दो भैरवों की पूजा का प्रचलन है, एक काल भैरव और दूसरे बटुक भैरव। पुराणों में भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से भी जाना जाता है।


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