बाबा नीब करौरी का कैंची धाम भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। 15 जून को कैंची धाम का 60वां प्रतिष्ठा दिवस मनाया जाएगा।
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /प्रिंटिंग मीडिया शैल ग्लोबल टाइम्स /संपादक अवतार सिंह बिष्ट , रूद्रपुर, उत्तराखंड
कैंची में बाबा नीब करौरी आश्रम की स्थापना के बाद से ही वहां हर साल 15 जून को स्थापना दिवस कार्यक्रम होता है। समय बीतने के साथ साथ स्थापना दिवस के इस कार्यक्रम ने कैंची मेले का रूप ले लिया और साल दर साल यह भव्य होता गया। मान्यता है कि बाबा नीब करौरी को हनुमान की उपासना से अनेक चामत्कारिक सिद्धियां प्राप्त थीं। लोग उन्हें हनुमान का अवतार भी मानते हैं। एक आम आदमी की तरह जीवन जीने वाले बाबा अपने पैर किसी को नहीं छूने देते थे। यदि कोई छूने की कोशिश करता तो वह उसे हनुमान जी के पैर छूने को कहते थे।
इन दिनों हर रोज दस से पंद्रह हजार श्रद्धालु बाबा के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। इस साल मंदिर ट्रस्ट ने दो लाख से अधिक लोगों को मालपुआ उपलब्ध कराने के लिए 42 क्विंटल कागज की थैली दिल्ली से मंगाई है। प्रसाद के साथ मिलने वाली सब्जी कागज से बनाए गए गिलास में उपलब्ध कराई जाएगी। विशेष रूप से बनाए गए चार लाख गिलास मंदिर में पहुंच गए है। पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कागज से निर्मित सामग्री उपयोग में लाई जाएगी। प्रसाद यानी मालपुआ बनाने का काम 12 जून से पूजा पाठ के साथ शुरू हो गया है, जो मेला समाप्त होने तक चलेगा। कैंची के ग्राम प्रधान और मंदिर ट्रस्ट से जुड़े पंकज निगल्टिया ने बताया कि इस बार दो लाख से अधिक लोगों के आने की उम्मीद है।
ट्रस्ट के प्रबंधक प्रदीप साह ने बताया कि प्रसाद बांटने के लिए लाखों की संख्या में कागज की थैलियां मंगाई गई है। मालपुए के प्रसाद के साथ आलू की सब्जी भी दी जाती है। मालपुआ प्रसाद बनाने का जिम्मा देख रहे एमपी सिंह ने बताया कि प्रसाद शुद्धता के साथ बनाया जाता है। जिस जगह पर मालपुआ बनाया जाएगा वहां विधि-विधान से भट्टी का पूजन कर दिया गया है। 15 जून को बाबा को भोग लगाने के बाद ही इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। कैची मंदिर के प्रसाद की महत्ता इतनी है कि इसे पाने के लिए लोग दूर-दूर से यहां मंदिर में पहुंचते हैं। जो लोग यहां नहीं पहुंच पाते वह अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के माध्यम से प्रसाद मंगाते हैं।
एक बार बाबा फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में सफर कर रहे थे। जब टिकट चेकर आया तो बाबा के पास टिकट नहीं था। तब बाबा को अगले स्टेशन ‘नीब करोली’ में ट्रेन से उतार दिया गया। बाबा थोड़ी दूर पर ही अपना चिपटा धरती में गाड़कर बैठ गए। ऑफिशल्स ने ट्रेन को चलाने का आर्डर दिया और गार्ड ने ट्रेन को हरी झंडी दिखाई, परंतु ट्रेन एक इंच भी अपनी जगह से नहीं हिली। बहुत प्रयास करने के बाद भी जब ट्रेन नहीं चली तो लोकल मजिस्ट्रेट जो बाबा को जानता था उसने ऑफिशल्स को बाबा से माफी मांगने और उन्हें सम्मान पूर्वक अंदर लाने को कहा। ट्रेन में सवार अन्य लोगों ने भी मजिस्ट्रेड का समर्थन किया। ऑफिशल्स ने बाबा से माफी मांगी और उन्हें ससम्मान ट्रेन में बैठाया। बाबा के ट्रेन में बैठते ही ट्रेन चल पड़ी। तभी से बाबा का नाम नीम करोली पड़ गया।
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