

- चौथे किस्म की पत्रकारिता का वर्ग एक रैकेट व एक दलाल के रूप में काम करता है। इस वर्ग में हर उमर की हसीना से लेकर, दौलत का अंबार परोस कर, कुछ लोग पत्रकारिता की आड़ में असल पत्रकारिता या असल पत्रकारों की मेहनत मिशन व मशक्कत के साथ उनकी इज्जत और उन्हे मिलने वाला धन या सहायता हड़प जाते हैं।तमाम कॉल गर्ल को पत्रकार बना देना, या धन देने वाले रिक्शा चलाने वालों को या शराब माफियाओं को पल भर में पत्रकार बना देना, इनके लिये चुटकियों का और दांयें-बांये हाथ का काम रहता है। चाहे जिसे जब चाहे अधिमान्यता दिलाना या छीन लेना इनके लिये इनका मूल पेशा है। इस तरह के पत्रकार व्हाट्सएप ग्रुप में अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए अपना खुद का ग्रुप बनाते हैं। उसे ग्रुप में जो इसे पीड़ित लोग हैं या फिर जिन लोगों पर इनका पूरा प्रभाव है ऐसे लोगों को ऐड करते हैं। ग्रुप में कुछ पुलिस के अधिकारी और कुछ प्रशासनिक अधिकारियों को भी ऐड कर दिया जाता है। जबकि इनका उन पुलिस अधिकारियों प्रशासनिक अधिकारी से कुछ लेना-देना नहीं होता, पीड़ित व्यक्ति इनके प्रभाव में आ जाता है और हर बार कुछ ना कुछ देते ही छूटता है। अक्सर ऐसे पत्रकार जब पुलिस की गिरफ्त में आते हैं, 2 से 4 माह तक की हवा खा चुके होते हैं। अगर आपके साथ भी पत्रकारिता की आड़ में भविष्य में कभी भी अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर आपके साथ ठगी हुई है।आप संपर्क करें ।हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स अवतार सिंह बिष्ट अध्यक्ष उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद, जर्नलिस्ट फ्रॉम उत्तराखंड ग्रुप,
संचालनालय जनसंपर्क से लेकर जिला जनसंपर्क कार्यालयों तक इनका माया जाल हर जगह फैला रहता है। दलाल पत्रकार विभिन्न सरकारी व् प्रशासनिक अधिकारियों के जूते चाटते और उनकी दलाली करते पुलिस स्टेशनों और दूसरे विभागों में देखे जा सकते हैं।ये दलाल दिन भर वहीं उनके दोने पत्तल और चाय की प्याली चाटते नजर आते हैं और उनके इशारे पर खुद को असली बाकी अच्छे पत्रकारों को फर्जी तक का लेबल देंने में भी नहीं चूकते।


- पांचवां वर्ग उन पत्रकारों का है, जो पहले वाले किस्म के वर्ग की पत्रकारिता करें तो, जिसके विरूद्ध उनकी कलम चलेगी। उस पर व उसके परिवार पर जुल्म और अत्याचार का कहर न केवल उधर से टूटेगा। बल्कि, इस देश में जहां बेईमानी, झूठ, फर्जीवाड़े, भ्रष्टाचार, हुआ है। वहां उन्हें सताया जाता है कि या तो वे खुद ही आत्महत्या कर लें या लिखना बंद कर दें। पत्रकारिता छोड़ दें। या उनकी सीधे हत्या ही करवा दी जाती है।
उनकी कलम के चारों ओर खौफ, आतंक व दहशत का जाल पसरा रहता है। पल-पल मिलती धमकियां, कभी जान से मारने की धमकियां, और मजे की बात यह कि उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं, कोई कार्यवाही नहीं । इनको सताने में, इनका गरीब होना, कमजोर होना, छोटा मीडिया होना अभिशाप है।

