
बिहारी गीत केवल गाना नहीं है, बल्कि यह मॉरीशस की परंपरा है, क्योंकि 191 साल पहले भारत से गए 36 बिहारी मजदूरों ने मॉरीशस देश बसाया था।


प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
क्या है इतिहास?
यह 18वीं सदी की बात है, भारत में अकाल और भुखमरी से लगभग 3 करोड़ लोगों की मौत हुई थी। उस समय, अंग्रेजों ने भारत पर अपनी पकड़ मजबूत करना शुरू कर दिया था। ब्रिटिश सरकार ने इसका फायदा उठाते हुए एक रास्ता निकाला, जिसे ‘द ग्रेट एक्सपेरिमेंट’ के नाम से जाना जाता है। इसके तहत, मजदूरों को कर्ज के बदले काम करने की पेशकश की गई। यानी अगर किसी मजदूर पर कर्ज है और वह उसे चुका नहीं सकता, तो उसे अंग्रेजों की गुलामी करनी होगी। इसके लिए एक निश्चित अवधि तय की गई। गुलामी के बदले मजदूरों को कर्ज से मुक्ति मिलनी थी।
उस समय, अंग्रेजों को चाय और कॉफी की आदत लग गई थी, जिसमें चीनी का इस्तेमाल होता था। उस समय चीनी का उत्पादन कैरिबियन आइलैंड यानी मॉरीशस और आसपास के द्वीपों पर होता था। इसलिए, अंग्रेजों ने कैरिबियन द्वीपों पर गन्ने की खेती बढ़ाई, जिसके लिए भारतीय मजदूरों को मॉरीशस लाया गया। 10 सितंबर 1834 को कोलकाता से एटलस नामक जहाज से 36 बिहारी मजदूर मॉरीशस गए। 53 दिनों की यात्रा के बाद, ये मजदूर 2 नवंबर 1834 को जहाज से मॉरीशस पहुंचे।
मॉरीशस में भारतीय आबादी कैसे बढ़ी?
ब्रिटिश सरकार ने भारतीय मजदूरों को 5 साल की नौकरी का वादा करके मॉरीशस भेजा। पुरुषों को 5 रुपये और महिलाओं को 4 रुपये प्रति माह वेतन दिया जाता था। मॉरीशस भेजने से पहले, उनसे एक समझौता कराया गया, जिसे भारतीय गिरमिट कहा जाता है। यह समझौता ब्रिटिश अधिकारी जॉर्ज चार्ल्स ने बनाया था। 36 मजदूरों के मॉरीशस जाने के बाद, यह सिलसिला सालों तक चलता रहा। 1834 से 1910 के बीच, 4.5 लाख मजदूरों को भारत से मॉरीशस भेजा गया। भारतीय मजदूर वहां काम करते और बस जाते थे। उनकी अगली पीढ़ी ने मॉरीशस को अपना देश माना। 5 साल के समझौते के कारण, मजदूर अवधि समाप्त होने से पहले भारत वापस नहीं आ सकते थे। 19वीं सदी में, चीनी का उत्पादन लगभग सभी देशों में शुरू हो गया। इसके बाद, औद्योगिक क्रांति आई और लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ने लगे।
1931 में, मॉरीशस में 68 प्रतिशत आबादी भारतीय थी। यहां मजदूरी के लिए आए परिवारों में रामगुलाम परिवार भी था, जिन्होंने मॉरीशस को अंग्रेजी शासन से आजादी दिलाई। उन्होंने भारतीय परंपराओं, विशेष रूप से भोजपुरी भाषा और हिंदू धर्म को बढ़ावा दिया। 1935 में, मोहित रामगुलाम के बेटे शिवसागर रामगुलाम इंग्लैंड से शिक्षा प्राप्त करके मॉरीशस लौटे। उन्होंने मॉरीशस में मजदूरों के अधिकारों और मतदान के अधिकार के लिए संघर्ष शुरू किया। 1968 में, जब मॉरीशस को आजादी मिली, तो शिवसागर रामगुलाम मॉरीशस के राष्ट्रपिता और पहले प्रधानमंत्री बने।
