
विकास शर्मा: सत्ता का स्वाद और जनता की नज़र


रुद्रपुर नगर निगम के नवनिर्वाचित महापौर विकास शर्मा हाल ही में सुर्खियों में रहे हैं, लेकिन इन सुर्खियों का कारण उनकी जीत से ज्यादा उनके राजनीतिक तेवर और हालिया विवाद बन गए हैं। चुनावी रण में सफल होकर जनता के वोटों से ‘फर्श से अर्श’ तक पहुंचे विकास शर्मा के लिए अब असली परीक्षा शुरू हुई है—सत्ता को पचाने की।
सत्ता और संतुलन का खेल
चुनाव जीतना एक बात है, लेकिन जीत के बाद अपने पद की गरिमा बनाए रखना और जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना दूसरी। हाल ही में हुए सरकारी कार्यक्रम में जिन वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने उनकी जीत में अहम भूमिका निभाई, उन्हें बैनरों और होर्डिंग्स में जगह नहीं दी गई। यह सवाल खड़ा करता है कि क्या महापौर पद की कुर्सी पर बैठते ही सत्ता का अहंकार हावी होने लगा है? क्या चुनावी सफलता को व्यक्तिगत जीत मानकर टीम वर्क की अनदेखी की जा रही है?
नेतृत्व और विनम्रता की कसौटी
राजनीति में एक सफल नेता वह होता है जो न केवल सत्ता की ताकत को समझे, बल्कि उसे जनता और अपने सहयोगियों के साथ संतुलन में भी रखे। विकास शर्मा के बारे में चर्चा है कि हाल ही में किसी अधिकारी से उनकी तीखी बहस हो गई। यह एक संकेत है कि या तो वे अपनी सत्ता को साबित करना चाहते हैं, या फिर प्रशासनिक तंत्र को अपनी ताकत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन क्या यह तरीका सही है?
जनता की नज़र और नेताजी का सफर
नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि जनता का आशीर्वाद ही उन्हें ऊँचाइयों तक पहुँचाता है और वही आशीर्वाद उनसे छिन भी सकता है। जनता की नज़र में जो नेता जमीन से जुड़ा रहता है, वही लंबे समय तक राजनीति में टिकता है। चुनाव के दौरान जो नेता गलियों और मोहल्लों में घूमकर वोट मांगता है, यदि वही नेता चुनाव जीतने के बाद लग्जरी कारों में घूमने लगे और आम जनता से दूरी बना ले, तो जनता का मोहभंग होते देर नहीं लगती।
भविष्य का रास्ता
विकास शर्मा के लिए यह समय जश्न मनाने का नहीं, बल्कि आत्मविश्लेषण करने का है। क्या वे अपने पद की जिम्मेदारियों को सही तरीके से निभा रहे हैं? क्या वे उन नेताओं और कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चल रहे हैं जिन्होंने उनकी जीत में योगदान दिया? और सबसे महत्वपूर्ण—क्या वे जनता की अपेक्षाओं पर खरे उतर रहे हैं?
राजनीति में सफलता स्थायी नहीं होती। अगर विकास शर्मा अपनी जीत को जनता की जीत मानते हैं और विनम्रता से आगे बढ़ते हैं, तो उनका राजनीतिक भविष्य उज्ज्वल रहेगा। लेकिन अगर सत्ता के अहंकार में वे अपने सहयोगियों और जनता की नब्ज को नज़रअंदाज करते हैं, तो यह जीत कितने दिनों तक टिकेगी, यह कहना मुश्किल है।
