भगवान शिव और उनके अस्त्रों की महिमा पू राणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर-इन त्रिदेवों का सृष्टि के संचालन में अलग-अलग योगदान है। ब्रह्मा सृजन करते हैं, विष्णु पालन करते हैं, और शिव संहारक के रूप में जाने जाते हैं।

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ऋषियों, मुनियों, देवताओं, असुरों और मनुष्यों द्वारा इन त्रिदेवों से वरदान प्राप्त करने की अनेक कथाएं प्राचीन ग्रंथों में मिलती हैं। शिव अपने उदार स्वभाव के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं, जो सभी को समान रूप से वरदान देते हैं।✍️ अवतार सिंह बिष्ट,
संवाददाता,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी!

शिव का रौद्रास्त्र

भोलेनाथ, जिन्हें सरलता से पूजा जाता है, जब रुद्र रूप में प्रकट होते हैं, तो दुष्टों के लिए संहारक बन जाते हैं। उनके पास एक भयानक अस्त्र है-रौद्रास्त्र, जो ग्यारह रुद्रों की शक्ति का आह्वान करता है और अपने लक्ष्य को नष्ट कर देता है। भगवान शिव के पास कई ऐसे अस्त्र हैं जो संपूर्ण विनाश की क्षमता रखते हैं, जैसे रौद्रास्त्र, महेश्वर अस्त्र, चंद्रहास तलवार, पाशुपतास्त्र, त्रिशूल, पिनाक धनुष, और परशु।

पिनाक: शिव का प्रलयंकारी धनुष

पौराणिक ग्रंथों में शिव के धनुष-पिनाक-का विशेष उल्लेख मिलता है। यह धनुष त्रेतायुग में सीता के स्वयंवर का कारण बना। इसकी टंकार से पर्वत हिलने लगते थे और पृथ्वी कांपने लगती थी। इसी कारण शिव को ‘पिनाकी’ कहा गया। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, देवताओं ने इस धनुष को पृथ्वी पर राजा जनक के पूर्वजों को सौंपा।

पिनाक और सारंग: शिव और विष्णु का युद्ध

कई पौराणिक स्रोतों में उल्लेख है कि देवताओं ने दो समान धनुष-सारंग और पिनाक-निर्मित करवाए। एक शिव को मिला और दूसरा विष्णु को। युद्ध की योजना बनी, लेकिन आकाशवाणी ने इसे रोक दिया। रुद्र ने अपना धनुष पृथ्वी पर फेंक दिया, जो पिनाक बना।

त्रिशूल: तीन कालों का संहारक

शिव के हाथों में सदैव विराजमान त्रिशूल केवल एक शस्त्र नहीं, बल्कि एक दिव्य प्रतीक भी है। यह तीन गुणों-सत्व, रजस और तमस-का प्रतीक है। जब शिव इसका प्रयोग करते हैं, तो यह संपूर्ण ब्रह्मांड को कंपित कर देता है।

महेश्वर अस्त्र और तृतीय नेत्र

शिव का तृतीय नेत्र महेश्वर अस्त्र है, जो उनके भीतर छिपे क्रोध और अग्नि की ज्वाला का प्रतीक है। इससे निकलने वाली ऊर्जा दिव्य प्राणियों को भी राख कर सकती है।

पाशुपतास्त्र: परम परमाणु अस्त्र

पाशुपतास्त्र को मन, वाणी, नेत्र या धनुष से चलाया जा सकता था। यह शिव का सबसे शक्तिशाली अस्त्र माना जाता है। रामायण में यह अस्त्र मेघनाद के पास था, और महाभारत में शिव ने इसे अर्जुन को दिया।

परशु और टांगीनाथ की कथा

भगवान शिव का एक और अस्त्र-परशु-उन्होंने विष्णु के अवतार परशुराम को दिया था। जनश्रुति के अनुसार, सीता स्वयंवर के बाद परशुराम ने आत्मग्लानि के कारण अपने परशु को पृथ्वी में गाड़ कर तपस्या की।

शिव, शस्त्र और संस्कृति

भगवान शिव के ये अस्त्र केवल पौराणिक कल्पनाएं नहीं हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति, शौर्य और आत्मबोध का प्रतीक भी हैं। हर अस्त्र एक चेतावनी है, एक तांडव का प्रतीक, और अंततः शिव में विलीन होने वाली ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है।

✧ धार्मिक और अध्यात्मिक

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