हिमालय की शांत वादियों में आपदाओं का खतरा गहराने लगा है। यह संकट इंसानी गतिविधियों से पैदा हुए ब्लैक कार्बन का परिणाम भी है। हिमालयी क्षेत्र में जम रही ब्लैक कार्बन की परत हिमनदों के पिघलने की गति बढ़ा रही है।

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इससे हिमनद झीलों के फटने, जलस्रोतों के सूखने और फसल चक्र गड़बड़ाने जैसी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा तेजी से बढ़ रहा है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान देहरादून से सेवानिवृत्त वरिष्ठ विज्ञानी डा. पीएस नेगी का कहना है कि अगर यह प्रवृत्ति जारी रही तो आने वाले समय में हिमालयी पारिस्थितिकी गहरे संकट में पड़ सकती है।

हिमालय में जलवायु परिवर्तन, एरोसोल व प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव पर मंथन के लिए हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के चौरास परिसर में सोमवार को शुरू हुई अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में पहुंचे वरिष्ठ विज्ञानी डा. पीएस नेगी हिमालय की पारिस्थितिकी पर 35 वर्ष से शोध कर रहे हैं।

अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारणों में जहां पहला स्थान ग्रीनहाउस गैसों का है, वहीं ब्लैक कार्बन दूसरा बड़ा कारण बन चुका है। पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों का अत्यधिक प्रयोग और जंगलों में लगने वाली आग ब्लैक कार्बन के मुख्य स्रोत हैं।

शोध के दौरान डा. नेगी इस निष्कर्ष पर भी पहुंचे कि हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने की दर 100 वर्ष में लगभग 12 प्रतिशत बढ़ी है, जिससे सदाबहार जलस्रोतों में भविष्य में पानी का संकट भी उत्पन्न हो सकता है। उनका मानना है कि ब्लैक कार्बन की उपस्थिति से स्नो लेपर्ड, भरल जैसे वन्यजीवों के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों को भी नुकसान पहुंच रहा है।

गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र में प्रति घन मीटर में 4.62 माइक्रो ग्राम ब्लैक कार्बन

डा. नेगी वर्ष 2016 से हिमालयी क्षेत्र में ब्लैक कार्बन की उपस्थिति और उससे वातावरण को होने वाले नुकसान पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने केंद्रीय विज्ञान मंत्रालय और वाडिया इंस्टीट्यूट के सहयोग से गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र में ब्लैक कार्बन की उपस्थिति का पता लगाने के लिए भोजवासा व चीड़वासा में दो वेधशालाएं भी स्थापित की हैं।

वह बताते हैं कि गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र में ब्लैक कार्बन की मात्रा 4.62 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर पहुंच गई है, जबकि 50 वर्ष पहले इस क्षेत्र में ब्लैक कार्बन की उपस्थिति ना के बराबर थी।

स्वच्छ ऊर्जा के साधनों को अपनाना होगा

डा. नेगी ने चेताया कि ब्लैक कार्बन दिन में सूर्य की गर्मी को सोखता है और रात में वातावरण में छोड़ देता है। इससे तापमान बढ़ता है और ग्लेशियरों का पिघलना तेज होता है। इस खतरे से निपटने के लिए पेट्रोल-डीजल वाहनों का न्यूनतम उपयोग, स्वच्छ ऊर्जा के साधनों को अपनाना और जंगल की आग पर नियंत्रण आवश्यक है।

अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका से भी पहुंच रहा ब्लैक कार्बन

हिमालयी क्षेत्र में ब्लैक कार्बन की उपस्थिति का पता लगाने के लिए डा. नेगी की ओर से भोजवासा व चीड़वासा में स्थापित वेधशालाओं से पहले देश के हिमालयी क्षेत्र में एक भी वेधशाला नहीं थी, जिससे ब्लैक कार्बन मापा जा सके। डा. नेगी का कहना है कि अब देश में 22 वेधशालाएं संचालित हैं। हिमालयी क्षेत्र में अधिकाधिक वेधशालाओं का होना जरूरी है। शोध में यह भी पता चला कि अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका जैसे महाद्वीपों से भी ब्लैक कार्बन भारत के वातावरण में पहुंच रहे हैं।


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