
रुद्रपुर जब राजनीति की बिसात पर हिंदू-मुस्लिम की गोटियां बिछाई जा रही हों, तब एक ऐसा स्वर सामने आता है जो न तो धर्म के तराजू में तौला गया है और न ही राजनीतिक दलों की रोटियों की आंच में सिंका है। यह स्वर है समाजसेवी और शिक्षाविद गोपाल सिंह पटवाल का, जिन्होंने रुद्रपुर के इंदिरा चौक पर स्थित 100 वर्ष पुरानी मजार को तोड़े जाने को “जनहित और राष्ट्रीयता का निर्णय” बताया है।


मजार विवाद: धर्म नहीं, विकास का मुद्दा
सैय्यद मासूम शाह मियां की मजार, जो वर्षों से सड़क के बीचोंबीच बनी हुई थी, आखिरकार प्रशासनिक कार्रवाई का शिकार बनी। इसे भाजपा सरकार की “लैंड जिहाद मुक्त उत्तराखंड” नीति के तहत एक साहसिक कदम के रूप में प्रचारित किया गया। लेकिन जब पूरा घटनाक्रम राजनीतिक रंग लेने लगा, तब पटवाल का बयान आया जिसने जनता को सोचने पर मजबूर कर दिया।
उन्होंने स्पष्ट कहा, “यह मजार चाहे किसी भी धर्म की हो, जब वह सार्वजनिक यातायात और सुरक्षा में बाधा बन जाए, तो उसे हटाना जनहित में है। इस निर्णय का स्वागत किया जाना चाहिए।” उन्होंने आगे जोड़ा, “यह सड़क केवल हिंदू नहीं चलेंगे, मुसलमान भी चलेंगे, सिख, ईसाई, जैन—हर कोई चलेगा। तो फिर इसे धार्मिक रंग देना किसलिए?”
राजनीति बनाम राष्ट्रीयता
विपक्ष की नेता मीना शर्मा जहाँ इस कार्रवाई को मुस्लिम समाज की धार्मिक भावनाओं से जोड़कर भाजपा को कटघरे में खड़ा कर रही हैं, वहीं विधायक शिव अरोड़ा और भाजपा नेता इसे हिंदुत्व और विकास की जीत मान रहे हैं। इस राजनीतिक रस्साकशी के बीच पटवाल का संतुलित दृष्टिकोण एक नई सोच को जन्म देता है।
“विकास के रास्ते में अगर धार्मिक या राजनीतिक भावनाएं बाधा बनेंगी, तो राष्ट्रहित कैसे सुरक्षित रहेगा?“—यह सवाल पटवाल ने उस समय उठाया जब सोशल मीडिया पर बयानों का तूफान मचा हुआ है।
गोपाल सिंह पटवाल: एक परिचय
गोपाल सिंह पटवाल सिर्फ एक समाजसेवी नहीं, बल्कि उत्तराखंड के शैक्षिक और सामाजिक पुनर्निर्माण में एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान व्यापक है और सार्वजनिक मुद्दों पर उनकी सोच समावेशी और व्यावहारिक रही है। रुद्रपुर के स्मार्ट सिटी बनने के स्वप्न को लेकर उनका समर्थन हमेशा से रहा है, लेकिन वह इस विकास को सभी समुदायों के हित में देखना चाहते हैं।
उन्होंने कहा, “रुद्रपुर केवल एक शहर नहीं, यह उत्तराखंड का भविष्य है। यहां का विकास किसी एक जाति, धर्म या वर्ग के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए है। अगर सड़क को चौड़ा करने के लिए कोई धार्मिक ढांचा हटाना पड़े और वह कानूनी रूप से गलत जगह पर हो, तो उसे हटाना न्यायोचित है।”
कानूनी पहलू और प्रशासनिक पक्ष
प्रशासन ने यह स्पष्ट किया कि मजार सड़क के बीचोंबीच अनधिकृत रूप से स्थापित थी और लंबे समय से ट्रैफिक और दुर्घटनाओं का कारण बन रही थी। इस संबंध में नोटिस भी दिए गए थे, लेकिन लंबे समय तक कोई हल नहीं निकल पाया। अंततः मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देशानुसार इसे हटाने का निर्णय लिया गया।
पटवाल इस पूरे प्रशासनिक निर्णय को समर्थन देते हैं लेकिन साथ ही यह भी कहते हैं कि प्रशासन को हर धर्म और समुदाय से संवाद करना चाहिए ताकि कोई गलतफहमी न हो। वह कहते हैं, “जनता को विश्वास में लेना प्रशासन की जिम्मेदारी है। किसी भी धार्मिक स्थल को हटाते समय संवेदनशीलता जरूरी है।”
मीडिया, सोशल मीडिया और वोटबैंक राजनीति
इस पूरी घटना को लेकर मीडिया और सोशल मीडिया ने अलग-अलग रंग प्रस्तुत किए। जहाँ एक ओर कुछ मीडिया चैनलों ने इसे हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष के रूप में दिखाया, वहीं कुछ ने विकास और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की उपलब्धि बताया। गोपाल सिंह पटवाल इस पर भी तीखी टिप्पणी करते हैं, “मीडिया को समाज जोड़ने का माध्यम बनना चाहिए, मसाला परोसने का नहीं। आज की मीडिया TRP के पीछे भाग रही है, समाज के पीछे नहीं।”
उन्होंने यह भी कहा कि वोटबैंक की राजनीति ने धर्म को हथियार बना दिया है, जबकि धर्म का कार्य जोड़ना है, तोड़ना नहीं।
विपक्षी बयान और संतुलन की जरूरत
मीना शर्मा जैसी वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने इस कार्रवाई को मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं पर हमला बताया। उन्होंने इसे भाजपा की विभाजनकारी राजनीति करार दिया। इसके जवाब में विधायक शिव अरोड़ा, रुद्रपुर महापौर विकास शर्मा एवं अन्य भाजपा नेताओं ने इसे ‘साहसिक’ और ‘लैंड जिहाद मुक्त रूद्रपुर जनहित में आवश्यक’ निर्णय करार दिया।
पटवाल का मानना है कि दोनों पक्षों को संयम और समर्पण के साथ बात करनी चाहिए। “अगर हम हर चीज को वोट से जोड़ेंगे तो फिर विकास का क्या होगा? क्या हम आने वाली पीढ़ियों को केवल झगड़े ही सौंपेंगे?”
स्मार्ट सिटी का सपना और सार्वजनिक भागीदारी
पटवाल कहते हैं, “स्मार्ट सिटी केवल इमारतों और सड़कों से नहीं बनती। वह नागरिकों की सोच, संवेदना और सहभागिता से बनती है।” रुद्रपुर को यदि स्मार्ट बनाना है, तो धर्म, जाति और राजनीति से ऊपर उठकर सभी को एकजुट होकर निर्णय लेने होंगे।
वे यह भी जोड़ते हैं कि प्रशासन को चाहिए कि भविष्य में इस प्रकार के ढांचों की पहचान पहले से करे और सभी समुदायों के प्रतिनिधियों के साथ संवाद कर योजनाबद्ध तरीके से काम करे। यही ‘स्मार्ट गवर्नेंस’ होगी।
समझदारी से बनेगा उत्तराखंड
रुद्रपुर का मजार प्रकरण केवल एक धार्मिक स्थल के हटने की घटना नहीं है। यह हमारे समाज, राजनीति और सोच का आइना है। गोपाल सिंह पटवाल जैसे लोग जब आगे आते हैं और जनहित, संवेदनशीलता और संतुलन की बात करते हैं, तो समाज को दिशा मिलती है।
गोपाल सिंह पटवाल का संतुलित दृष्टिकोण आने वाले समय में रुद्रपुर की राजनीति और सामाजिक वातावरण को सकारात्मक दिशा देने का कार्य करेगा।
