राजकुमार ठुकराल और रविन्द्र सिंह नेगी की रहस्यमई मुलाकात: क्या यह बीजेपी में ‘घर वापसी’ का संकेत है या सिर्फ एक शिष्टाचार?

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रुद्रपुर शनिवार को जब दिल्ली के पटपड़गंज विधानसभा क्षेत्र से विधायक रविन्द्र सिंह नेगी रुद्रपुर पहुँचे और पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल के निजी निवास पर जाकर उनसे मुलाक़ात की, तो राजनीतिक गलियारों में फुसफुसाहट तेज़ हो गई। यूँ तो यह मुलाकात सामान्य प्रतीत हो सकती है — एक वर्तमान विधायक का पूर्व विधायक से शिष्टाचार भेंट — परंतु उत्तराखंड की राजनीति में, खासकर जब बात राजकुमार ठुकराल की हो, तो “सामान्य” शब्द कभी भी वैसा सरल नहीं होता जैसा दिखता है।संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

एक मुलाकात, कई सवाल,सबसे अहम सवाल यही है — क्या यह केवल एक शिष्टाचार भेंट थी? या फिर यह एक राजनीतिक नब्ज टटोलने की कवायद थी, जो 2027 के चुनावों की ओर इशारा करती है? खास बात यह है कि नेगी जी का कोई सार्वजनिक कार्यक्रम रुद्रपुर में निर्धारित नहीं था। वे केवल और केवल ठुकराल से मिलने आए। ना कोई जनसभा, ना कोई प्रेस वार्ता। ऐसे में यह अनुमान लगाना स्वाभाविक है कि यह मुलाक़ात ‘विशेष प्रयोजन’ के तहत हुई।

ठुकराल की पृष्ठभूमि: बग़ावत से संभावित वापसी तक,राजकुमार ठुकराल, जो कभी भाजपा के तेजतर्रार और जमीनी नेता माने जाते थे, को 2022 विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। कारण था उनका निर्दलीय चुनाव लड़ना, जो पार्टी अनुशासन के विरुद्ध था। लेकिन इस बग़ावत के बावजूद, उन्होंने ज़मीन पर अपनी पकड़ को बनाए रखा। निर्दलीय होने के बावजूद वोट प्रतिशत, जनसमर्थन और राजनीतिक सक्रियता यह बताती रही है कि ठुकराल को पूरी तरह नज़रअंदाज़ करना भाजपा के लिए भी आसान नहीं है।

अब जब एक प्रभावशाली भाजपा विधायक उनसे मिलने के लिए विशेष रूप से दिल्ली से रुद्रपुर आते हैं, तो यह केवल व्यक्तिगत संबंध नहीं, बल्कि राजनीतिक सन्देश भी लगता है।

नेगी की भूमिका: संदेशवाहक या मित्रवत मुलाकात?रविन्द्र सिंह नेगी भाजपा के भीतर एक समर्पित और भरोसेमंद विधायक माने जाते हैं। उनकी संगठन के शीर्ष नेतृत्व तक सीधी पहुँच है। यह बात भी अहम है कि पार्टी हाईकमान अक्सर इसी तरह “अनौपचारिक दूतों” के माध्यम से नेताओं की संभावनाओं को टटोलता है। क्या नेगी को पार्टी ने भेजा था? यह सवाल अब हवा में है।

अगर नेगी को सच में हाईकमान ने भेजा है, तो यह संकेत साफ है — भाजपा 2027 की रणनीति पर अभी से काम कर रही है, और “प्रभावी बागियों” को वापस लाकर पार्टी को मज़बूत करने की दिशा में सोच रही है।

रुद्रपुर की अहमियत और ठुकराल की ताकत,रुद्रपुर सीट भाजपा के लिए हमेशा एक रणनीतिक सीट रही है। ठुकराल ने इस क्षेत्र से कई बार जीत दर्ज की है और उनका सामाजिक, जातिगत और व्यापारी समुदाय में प्रभाव अभी भी बना हुआ है। 2022 में उनके निर्दलीय चुनाव लड़ने से भाजपा को नुकसान हुआ था, और यह बात पार्टी भलीभांति जानती है।

ऐसे में अगर भाजपा ठुकराल को पुनः पार्टी में शामिल करने की सोच रही है, तो यह एक व्यावहारिक और चुनावी दृष्टिकोण से उपयोगी कदम हो सकता है।

क्या वाकई वापसी के संकेत हैं?सूत्रों की मानें, तो इस मुलाकात के बाद पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं से भी परोक्ष बातचीत हुई है। फिलहाल कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन ठुकराल का सार्वजनिक रूप से भाजपा नेताओं से मेल-जोल बढ़ाना इस ओर इशारा जरूर करता है कि ‘बर्फ पिघल रही है’।नेगी की उपस्थिति इस प्रक्रिया में एक ‘सॉफ्ट स्टार्ट’ की तरह देखी जा सकती है। यह जाँचने के लिए कि ज़मीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया क्या होगी, और पार्टी के भीतर विरोध कितना हो सकता है।

विकल्प क्या हैं?भाजपा चाहे तो ठुकराल को “सशर्त वापसी” के तहत पुनः शामिल कर सकती है। उदाहरणस्वरूप, उन्हें पार्टी में लाने के बाद किसी जिला संगठन या प्रकोष्ठ में दायित्व देकर धीरे-धीरे चुनावी वापसी की राह बनाई जा सकती है।दूसरी ओर, अगर ठुकराल को पार्टी में नहीं लिया जाता, तो यह मुलाकात एक असहज सियासी उलझन बन सकती है — जो यह सवाल उठाएगी कि क्या भाजपा भीतर ही भीतर अपने फैसलों को लेकर असमंजस में है?

राजनीति में कुछ भी आकस्मिक नहीं होता,उत्तराखंड की राजनीति में जब कोई निष्कासित नेता भाजपा के वर्तमान विधायक के साथ चाय की चुस्कियाँ लेता है, तो वह केवल एक व्यक्तिगत प्रसंग नहीं होता — वह एक रणनीतिक इशारा होता है।राजकुमार ठुकराल और रविन्द्र सिंह नेगी की यह मुलाकात भी शायद ऐसा ही इशारा है — जिसमें संवाद कम और संकेत ज़्यादा हैं।अब देखना है कि क्या यह संकेत आने वाले समय में ‘वापसी की औपचारिक घोषणा’ में बदलते हैं या फिर यह कहानी भी ‘राजनीतिक मुलाक़ातों के इतिहास’ में एक फुटनोट बनकर रह जाती है।



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