
पाकिस्तान के कई प्रांतों में पानी का गंभीर संकट खड़ा हो गया। हालात इसकदर बिगड़ने लगे कि पाकिस्तान में सियासी उथल-पुथल शुरू हो गई। पाकिस्तान जल विद्युत विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल सज्जाद गनी ने इस्तीफा दे दिया। ऐसा सिंधु जल संधि को लेकर पाकिस्तान के नागरिक प्रशासन और सेना के बीच मतभेद के चलते हुआ।


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
सिंधु जल संधि पर शाह की खरी-खरी
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दो टूक कहा कि पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि कभी बहाल नहीं होगी। पाकिस्तान को प्यासा रखा जाएगा। अमित शाह ने जैसे ही ये ऐलान किया तो पाकिस्तान में हड़कंप मच गया। सवाल ये उठने लगे कि क्या सच में ऐसा हो सकता है। आखिर कितने दिनों तक सिंधु जल समझौते को भारत सस्पेंड रख सकता है, बताते हैं आगे।
शाह बोले- कभी बहाल नहीं होगा ये समझौता
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को इंटरव्यू में सिंधु जल संधि के सस्पेंशन पर खुलकर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि ये समझौता कभी बहाल नहीं होगा। अंतरराष्ट्रीय संधियों को एकतरफा रद्द नहीं किया जा सकता, लेकिन हमारे पास इसे निलंबित करने का अधिकार था, इसलिए हमने ये कदम उठाया। संधि की प्रस्तावना में इस बात का उल्लेख है कि यह दोनों देशों की शांति और प्रगति के लिए थी, लेकिन एक बार जब इसका उल्लंघन हो गया तो इसे बचाने के लिए कुछ नहीं बचा।
ऐसे घुटनों पर आएगा पाकिस्तान
अमित शाह ने आगे ये भी कहा कि सिंधु जल संधि सस्पेंड होने के बाद हम उस पानी का इस्तेमाल भारत के लिए करेंगे। हम उस पानी को नहर बनाकर राजस्थान समेत कई दूसरे इलाकों तक ले जाएंगे। पाकिस्तान को वह पानी नहीं मिलेगा जो वह अनुचित रूप से प्राप्त कर रहा था। पाकिस्तान को प्यासा रखा जाएगा। अमित शाह के इस ऐलान ने स्पष्ट कर दिया कि अब ये संधि ठंडे बस्ते में चली गई है। निकट भविष्य में इस मुद्दे पर बातचीत के लिए पाकिस्तान की उम्मीदों पर पानी फिर गया है।
कब तक सस्पेंड रहेगा सिंधु जल समझौता जानिए
इससे पहले केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने भी अपनी मासिक रिपोर्ट में इस पर स्टैंड कर दिया था। रिपोर्ट में बताया गया कि सिंधु जल संधि तब तक निलंबित रहेगी, जब तक कि पाकिस्तान सुधर नहीं जाता। जब तक पड़ोसी मुल्क विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से सीमा पार आतंकवाद के लिए अपने समर्थन को त्याग नहीं देता।
सिंधु जल समझौते का पूरा इतिहास
आजादी के बाद से ही सिंधु जल बंटवारे को लेकर दोनों मुल्कों में कई तरह की दुविधापूर्ण स्थिति पैदा होने लगी थी। इसे दूर करने के लिए 65 साल पहले 1960 में सिंधु जल समझौता हुआ। इसमें अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से दोनों देशों के बीच इस नदी के पानी बंटवारे को लेकर एक समझौता हुआ जो दोनों देशों को मान्य हुआ। विश्व बैंक समझौते में मध्यस्थ बना।
पाकिस्तान के लिए क्यों जरूरी ये संधि
इस संधि के तहत पश्चिमी नदियों- सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी पाकिस्तान का और पूर्वी नदियों- रावी, ब्यास और सतलज के पानी पर भारत का अधिकार है। इस संधि पर अमल करने के लिए इंडस कमिशन (सिंधु आयोग) का गठन किया गया। भारत को 20 फीसदी और पाकिस्तान को 80 फीसदी पानी मिलता है।
समझौते के कारण कई बार टकराव
इस समझौते के कारण पिछले कुछ साल से लगातार टकराव होता रहा है। कुछ साल पहले भारत सरकार की ओर से 1960 में हुए सिंधु जल समझौते में संशोधन करने के लिए नोटिस भेजा गया था। सरकार ने कहा कि पाक की कार्रवाइयों ने सिंधु संधि के प्रावधानों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। जम्मू-कश्मीर में 2007 में शुरू हुई किशनगंगा हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना के तहत रन ऑफ द रिवर बांध का निर्माण किया गया है।
पाकिस्तान लगातार उठाता रहा है ये मुद्दा
पाकिस्तान इस आधार पर इस परियोजना का विरोध कर रहा कि सिंधु जल समझौते के तहत भारत को नदी का पानी डायवर्ट करने की अनुमति नहीं है। दरअसल, यह बांध किशनगंगा नदी का पानी झेलम नदी पर बने पॉवर प्लांट की ओर डायवर्ट करता है। इसका इस्तेमाल सिंचाई के साथ ही बिजली उत्पादन के लिए किया जाएगा। यह प्लांट करीब 330 MW बिजली पैदा कर सकता है। जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने भी सत्ता में आने के बाद इस समझौते पर सवाल उठाया और कहा कि इससे कश्मीर का नुकसान हो रहा है।
पाकिस्तान पर संधि के उल्लंघन का लगता रहा है आरोप
पाकिस्तान लगातार सिंधु जल संधि के प्रावधानों का उल्लंघन कर रहा है। इतना ही नहीं भारत की ओर से लगातार प्रयास के बाद भी पाक ने 2017 से 2022 तक स्थायी सिंधु आयोग की 5 बैठकों में इस गंभीर मुद्दे पर चर्चा करने से ही इनकार कर दिया। 2015 में भी इस परियोजना पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिए पाकिस्तान ने एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति की मांग की थी। हालांकि बाद में पाकिस्तान ने अपने अनुरोध को वापस ले लिया और इस मामले में एक मध्यस्थ अदालत की मांग कर डाली।
भारत की दो टूक के बाद अब आगे क्या?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जिस तरह से समझौते को सस्पेंड रखने और पाकिस्तान को प्यासा रखने का दो टूक ऐलान किया, वो पड़ोसी मुल्क के लिए बड़ा झटका है। पाकिस्तान को भारत की इस कार्रवाई से बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। भारत अब तक मानवीय आधार पर इस समझौते का पालन करता रहा लेकिन इस बार जिस तरीके से सीमा पार से अमानवीय आतंकी हमला हुआ, उसके बाद ऐसी सख्ती जरूरी हो गई। वहीं जानकारों ने कहा है कि भारत को इस कार्रवाई के खुद अपने बांध भी दुरुस्त रखने होंगे ताकि सरप्लस पानी का सही इस्तेमाल हो।
