हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स ,अवतार सिंह बिष्ट, रूद्रपुर उत्तराखंड चारधाम आलवेदर रोड प्रोजेक्ट के तहत यमुनोत्री हाईवे पर सिलक्यारा में 853.79 करोड़ रुपये की लागत से बन रही 4.5 किमी लंबी सुरंग में गंभीर सुरक्षा खामी सामने आई है।

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डीपीआर में एस्केप टनल (निकास सुरंग) का प्रविधान होने के बावजूद निर्माण कंपनी नवयुग इंजीनियरिंग ने यह सुरंग बनाई ही नहीं। यही कारण है कि सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों का जिंदगी खतरे में है।

निकास सुरंग बनी होती तो संभवत: रेस्क्यू के लिए इतने अधिक जतन नहीं करने पड़ते। इस डबल लेन सुरंग का निर्माण वर्ष 2018 से एनएचआइडीसीएल की देखरेख में न्यू आस्टि्रयन टनलिंग मेथड से हो रहा है। लेकिन, इसमें निर्माण कंपनी की ओर से सुरक्षा मानकों को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया।

नियम को रखा ताक पर

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नियमानुसार तीन किमी या इससे अधिक लंबी सुरंग के साथ अनिवार्य रूप से निकास सुरंग बनाई जानी चाहिए, लेकिन यहां नियमों को हवा में उड़ा दिया गया। हैरत देखिए कि कागजों में बाकायदा निकास सुरंग का डिजाइन तैयार किया गया है। यह डिजाइन बीते 16 नवंबर को घटनास्थल पर पहुंचे सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह (सेनि) भी देख चुके हैं। वहीं, सिलक्यारा में हुए सुरंग हादसे को लेकर भूविज्ञानियों ने भी चिंता व्यक्त की है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक पीसी नवानी ने कहा कि आपातकालीन स्थिति के दौरान बचाव कार्य के लिए इस तरह की लंबी सुरंग परियोजनाओं में भागने के रास्ते होने चाहिए।

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सुरंग निर्माण में कमियों को उजागर

इस सुरंग में भी आपातकालीन निकास की व्यवस्था होती तो फंसे हुए श्रमिक आसानी से बाहर आ सकते थे। यह सुरंग डबल लेन है और इसमें सुरक्षा की व्यवस्था अनिवार्य रूप से होनी चाहिए थी। वरिष्ठ विज्ञानी नवानी ने कहा कि इस सुरंग में विधिवत ट्रीटमेंट की कमी दिखी है, जिसके कारण इसका बड़ा हिस्सा टूटा है, जो कि पहले से ही संवेदनशील था। इसलिए इस क्षेत्र में निकास सुरंग बनाई जानी जरूरी थी। सुरंग का हिस्सा टूटना भी सुरंग निर्माण में कमियों को उजागर करता है।

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ह्यूम पाइप हटाने पर उठ रहे सवाल

सुरंग की डीपीआर में आपातकालीन द्वार बनाने का प्रविधान नहीं किया गया। लिहाजा आपात स्थिति में आवाजाही के लिए तीन वर्ष पूर्व सुरंग के संवेदनशील क्षेत्र में ह्यूम पाइप बिछाए गए थे, जिन्हें एक माह पूर्व अचानक हटा दिया गया। ऐसा क्यों किया गया, इसका निर्माण कंपनी के अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं है। शुक्रवार को डेंजर जोन सामने आने के बाद संवेदनशील क्षेत्र में 15 ह्यूम पाइप बिछाए गए, ताकि सुरंग में फंसे श्रमिकों से संवाद बनाए रखने के साथ उन तक भोजन, आक्सीजन व दवाएं पहुंचाने वाले पानी निकासी के पाइप तक रेस्क्यू टीम सुरक्षित आवाजाही कर सके।

निकासी सुरंग के लिए 900 मिमी के स्टील पाइप बिछाने को चलाई जा रही ड्रिलिंग मशीन के कंपन से शुक्रवार को इस क्षेत्र में डेंजर जोन बन गया था। इसके चलते यहां से बचाव अभियान का कार्य पूरी तरह रोक दिया गया है। ऐसे में श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए रणनीति में बदलाव करते हुए वर्टिकल और हारिजांटल बोरिंग के जरिये सुरंग के भीतर पहुंचने की कार्य योजना तैयार की गई। इसके लिए पांच स्थान चिह्नित किए गए हैं। इनमें से दो स्थानों पर कार्य शुरू भी कर दिया गया है।

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पीएमओ ने संभाली कमान

इस बीच शनिवार को सिलक्यारा पहुंची प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की टीम ने बचाव अभियान की कमान अपने हाथ में ले ली। देहरादून में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अधिकारियों के साथ बैठक में बचाव अभियान की समीक्षा की। सरकार ने राज्य में कार्यरत केंद्रीय संस्थानों के साथ समन्वय के लिए वरिष्ठ आइएएस डा. नीरज खैरवाल को नोडल अधिकारी नियुक्त किया है। सुरंग में फंसे श्रमिकों को बाहर निकालने में हो रही देरी से उनके स्वजन व अन्य श्रमिकों का सब्र अब टूटने लगा है।

पहाड़ दरकने की तेज आवाज

उत्तरकाशी में सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों को बचाने के लिए नई दिल्ली से लाई गई अमेरिकन औगर ड्रिलिंग मशीन से गुरुवार सुबह 60 मीटर लंबी निकासी सुरंग बनाने का काम शुरू हुआ था। शुक्रवार तक लगभग 30 मीटर सुरंग तैयार कर ली गई थी, लेकिन इस अभियान को तब बड़ा झटका लगा जब दोपहर में पहाड़ दरकने की तेज आवाज हुई। इससे बचाव कार्य कर रही टीमों में हड़कंप मच गया और आनन-फानन बचाव अभियान रोकना पड़ा। इसके बाद सुरंग के मुहाने से 150 मीटर से 203 मीटर तक के हिस्से को डेंजर जोन मानते हुए काम रोक दिया गया।

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अन्य विकल्पों पर काम शुरू

शनिवार को अधिकारियों ने विशेषज्ञों के साथ समीक्षा करके इस स्थल से बचाव अभियान को आगे बढ़ाने को खतरनाक माना। ऐसे में इस छोर से अभियान को पूरी तरह रोक दिया गया और अन्य विकल्पों पर काम शुरू कर दिया गया। इस छोर पर अब केवल सुरक्षात्मक कार्य होंगे। दोपहर में पीएमओ के उप सचिव मंगेश घिल्डियाल और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पूर्व सलाहकार एवं आलवेदर रोड परियोजना के ओएसडी भाष्कर खुल्बे अपनी टीम के साथ सिलक्यारा पहुंचे व बचाव अभियान की कमान अपने हाथ में ले ली। बचाव के अन्य विकल्पों को लेकर पीएमओ की टीम ने भूविज्ञानियों के साथ सिलक्यारा सुरंग के आसपास की पहाड़ी का निरीक्षण किया। वर्टिकल (ऊध्र्वाकार) और हारिजांटल (क्षैतिज) बोरिंग के लिए पांच स्थान चिह्नित किए गए। इनमें से दो स्थानों पर बोरिंग के लिए तैयारी शुरू कर दी गई।

रविवार सुबह तक सड़क बनाने का लक्ष्य रखा

एक स्थान सिलक्यारा की तरफ बने सुरंग के मुहाने से करीब 500 मीटर दूर है। यहां से श्रमिकों तक पहुंचने के लिए करीब 103 मीटर वर्टिकल बोरिंग करनी पड़ेगी। इसके लिए पहले एक किलोमीटर लंबी सड़क बनाई जा रही है, जिससे ड्रिलिंग मशीन को बोरिंग के लिए चिह्नित स्थान तक पहुंचाया जाएगा। रविवार सुबह तक सड़क बनाने का लक्ष्य रखा गया है। जबकि, दूसरा स्थान सिलक्यारा से लगभग 2500 मीटर आगे पोलगांव (बड़कोट) की तरफ है। सुरंग के इस हिस्से का निर्माण अभी शेष है। यहां से श्रमिकों तक पहुंचने के लिए 500 मीटर हारिजांटल बोरिंग करनी होगी। प्रधानमंत्री मोदी के पूर्व सलाहकार भाष्कर खुल्बे ने बताया कि सुरंग में फंसे श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकालने में कम से कम पांच दिन का समय लगेगा। एक साथ सभी पांच विकल्पों पर काम शुरू कर दिया गया है। बचाव अभियान में अभी तक की धीमी प्रगति से पीएमओ भी चिंतित है।

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सुरंग के प्रवेश द्वार पर बौखनाग देवता का मंदिर स्थापित

बौखनाग सिलक्यारा क्षेत्र के प्रमुख देवता हैं, इसलिए रेस्क्यू अभियान के दौरान हर दिन कंपनी की ओर से सुरंग के अंदर बौखनाग देवता की पूजा-अर्चना की जा रही है। अब सुरंग में फंसे श्रमिकों को सकुशल बाहर निकालने की कामना के साथ पोलगांव (बड़कोट) की ओर सुरंग के प्रवेश द्वार के पास बौखनाग देवता का मंदिर स्थापित किया गया है।

डेंजर जोन में बिछाए ह्यूम पाइप

सुरंग के भीतर भूस्खलन वाले क्षेत्र में डेंजर जोन बनने के बाद ह्यूम पाइप बिछाए गए हैं। जिससे सुरंग में फंसे श्रमिकों से संवाद बनाए रखने और उन तक भोजन सामग्री, आक्सीजन व दवाएं पहुंचाने वाले पानी निकासी के पाइप तक टीमें सुरक्षित आवाजाही कर सकें।

दिल्ली में उच्चस्तरीय हुई बैठक

सिलक्यारा में सुरंग में फंसे श्रमिकों को कीमती जानें बचाने के लिए सरकार हर मोर्चे पर काम करेगी। शनिवार को दिल्ली में हुई उच्चस्तरीय बैठक में तकनीकी सलाह के आधार पर विभिन्न विकल्पों पर विचार किया गया। इसमें तय हुआ कि इनमें से पांच बोरिंग विकल्पों पर काम किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार, नेशनल हाईवे एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड (एनएचआइडीसीएल), ओएनजीसी, एसजेवीएनएल, टीएचडीसी और आरवीएनएल को एक-एक विकल्प सौंपा गया है।

QAबीआरओ और भारतीय सेना की निर्माण शाखा भी बचाव अभियान में सहायता कर रही है। एनएचआइडीसीएल के एमडी महमूद अहमद को सभी केंद्रीय एजेंसियों के साथ समन्वय के लिए प्रभारी बना सिलक्यारा में तैनात किया है। सरकार ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि बचाव कार्य के लिए जो भी संभव हो, वह किया जाए।हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स ,अवतार सिंह बिष्ट, रूद्रपुर उत्तराखंड


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