संपादकीय :रुद्रपुर का ब्लॉक प्रमुख चुनाव: ‘शाम-दाम-दंड-भेद’ की परख

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रुद्रपुर ब्लॉक प्रमुख का चुनाव इस बार महज एक संवैधानिक प्रक्रिया भर नहीं रह गया है, बल्कि यह सत्ता, रणनीति और सियासी वफादारी की एक कठिन परीक्षा में बदल चुका है। भाजपा ने विपिन जल्होत्रा की पत्नी ममता जल्होत्रा को अधिकृत प्रत्याशी घोषित तो कर दिया, लेकिन असली जंग अब फ्लोर टेस्ट में लड़ी जानी है, जहां गणित और राजनीति दोनों का कसौटी पर परीक्षण होगा।।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)

सूत्रों के अनुसार, दो दर्जन से अधिक बीडीसी सदस्य उनके खिलाफ खड़े बताए जा रहे हैं। यह विरोध केवल व्यक्तिगत असहमति का परिणाम नहीं है, बल्कि विपिन का कांग्रेस विधायक से तालमेल बैठाने का आरोप, पार्टी के भीतर वैचारिक असुविधा पैदा कर चुका है। भाजपा की मूल राजनीतिक लाइन से अलग दिखने वाला यह कदम, खासकर 2022 के विधानसभा चुनाव में हुई कटु प्रतिस्पर्धा की पृष्ठभूमि में, कई सदस्यों के लिए स्वीकार्य नहीं हो रहा।

स्थिति को और जटिल बना रहा है पूर्व विधायक के करीबी जितेंद्र गौतम का संभावित प्रत्याशी उतारने का फैसला। यदि उनकी पत्नी मैदान में आती हैं, तो मुकाबला सीधे टकराव में बदल जाएगा और समीकरण पलभर में बदल सकते हैं। स्थानीय राजनीति के जानकार मानते हैं कि विपिन के सामने विरोधियों से ज्यादा खतरा अपने ही घर के भीतर छिपा है।

अब सवाल है — इस प्रतिष्ठा से जुड़े चुनाव में जीत कैसे सुनिश्चित की जाएगी? यहीं पर ‘शाम-दाम-दंड-भेद’ की राजनीति की पुरानी नीति आज भी जीवित दिखती है। मान-मनौव्वल, प्रलोभन, दबाव और रणनीतिक विभाजन—ये सभी हथियार राजनीतिक हथेली में तैयार रखे जाते हैं। आने वाले दिनों में देखा जाएगा कि यह चुनाव लोकतांत्रिक आदर्शों के तहत संपन्न होता है या फिर सत्ता की जुगतबाज़ी और गुप्त सौदों के बीच सिमटकर रह जाता है।

रुद्रपुर का यह फ्लोर टेस्ट, केवल एक ब्लॉक प्रमुख के चयन की प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह मापदंड भी होगा कि सत्ता के लिए राजनीति अपने कितने मूल्यों की बलि देने को तैयार है। जीत चाहे किसी की हो, यह परीक्षा साफ कर देगी कि आज की राजनीति में नैतिकता और वैचारिक प्रतिबद्धता की कीमत कितनी रह गई है।


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