
मान्यता है कि इस दौरान पितरों के निमित्त श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. जिससे इनका वंशज खुशहाल रहता है. कई बार ऐसा होता है कि पूर्वजों की मृत्यु की तिथि याद नहीं रहती है. चूंकि, मृत्यु तिथि के अनुसार ही पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है. ऐसे में अधिकांश लोगों के मन में यह प्रश्न हो सकता है कि अगर पितरों की मृत्यु की तिथि याद नहीं है तो उनके निमित्त तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कैसे किस दिन कर करना चाहिए. आइए जानते हैं कि पितरों की मृत्यु तिथि याद नहीं होने पर उनका श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किस दिन करें.


।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
पितृ पक्ष क्यों है महत्वपूर्ण?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख-समृद्धि तथा आयु का आशीर्वाद देते हैं। यही कारण है कि इस कालखंड में विधि-विधान से तर्पण और दान-पुण्य करना बेहद शुभ माना जाता है।
सर्वपितृ अमावस्या 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
दृक पंचांग के अनुसार, आश्विन मास की अमावस्या तिथि 21 सितंबर को रात 12 बजकर 16 मिनट से शुरू होगी. जबकि इसका समापन 22 सितंबर को रात 1 बजकर 23 मिनट पर होगी. ऐसे में उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए सर्वपितृ अमावस्या 21 सितंबर को मनाई जाएगी.
पूर्वजों की मृत्यु तिथि न पता हो तो क्या करें?
कई बार परिवार को अपने पितरों की सही मृत्यु तिथि याद नहीं रहती या किसी कारण से समय पर श्राद्ध करना संभव नहीं हो पाता. ऐसे सभी पितरों के लिए सर्वपितृ अमावस्या का दिन सर्वश्रेष्ठ माना गया है. यही दिन पितृ पक्ष का समापन भी होता है और इसे सभी पितरों को मोक्ष प्रदान करने वाली तिथि कहा गया है.
सर्वपितृ अमावस्या से जुड़ी विशेष बातें
यदि पूर्वजों की मृत्यु तिथि अज्ञात है या श्राद्ध नहीं कर पाए हैं, तो इस दिन करना सर्वोत्तम होता है. संन्यासी और साधुओं का श्राद्ध भी इसी दिन किया जाता है. ऐसें में पूर्वजों की मृत्यु तिथि याद न होने पर इस दिन तर्पण और पिंडदान से पितरों की आत्मा को तृप्ति और शांति मिलती होती है. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन ब्राह्मणों को भोजन और दान देने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है, जिससे परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है.

